भलाई

परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥ 

 जिस मनुष्य के मन में दूसरे की लिए केवल प्रेम की भावना होती है, जो केवल दूसरों का भला चाहता है, इस दुनिया में उसके लिए कोई भी कार्य करना असंभव नहीं है। हे राम ! मेरी हैसियत से ज़्यादा तूने मेरी थाली में परोसा से, तू लाख मुश्किलें देदे फिर भी मुझे तुझ पर भरोसा है। जब भगवान हम पर असीम प्रेम  बरसाता है, तो उस प्रेम का कुछ हिस्सा हम बाँट देंगे तो हमें दुगुना प्रेम ही मिलेगा क्यूँकि हम सभी जानते हैं की छीन कर खाने वाले का कभी पेट नहीं भरता और बाँट के खाने वाला कभी भूखा नहीं सोता। जो व्यक्ति इस जीवन मूल्य को अपना कर चलता है, वो ही इस दुनिया का सबसे सुखी आदमी है क्यूँकि इंसान जितना झुकता है, उतना ही ऊपर उठता है। 

हम में से कई लोग दूसरों का भला करने की सोचते तो है परंतु कर नहीं पाते क्यूँकि हम उसे टाल देते हैं और फिर वह होता ही नहीं हैं। दूसरी और कभी गुस्सा करने का मन करे तो वो तो हम टालते ही नहीं हैं। इसी प्रवर्ति को बदलना होगा। कोई मनुष्य अपने जन्म से बुरा या अच्छा नहीं होता और हर मनुष्य के अंदर मानवता और अच्छाई छिपी होती है। न जाने कुछ मनुष्य क्यों अपनी इस अच्छाई को छुपा कर रखते है ? क्यों वो इस अच्छाई का प्रयोग किसी की दुनिया रंगीन करने के लिए नहीं करते ? इसी प्रवर्ति को बदलना होगा। 

जो लोग फूल बेचते है, उनके हाथ में अक्सर उसकी सुगंध रह जाती है। यानी जब हम किसी से उम्मीद किए बिना उसके लिए कुछ अच्छा करते हैं, तो हमारा हर अंग प्रसन्न हो उठता है। जब हम प्रसन्न होते हैं, तब हम अपने जीवन को सही मायने में जीते है, अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं और हमारा हर डर एक चुनौती बन जाता है। जो मनुष्य अपने डर को डरा सकता है, वह कुछ भी हासिल कर सकता है। 

जब हम दूसरों के लिए केवल भलाई ही करते हैं, किसी के प्रति नकारात्मक रवैया नहीं रखते तब हमारे साथ भी कोई अशिष्ट व्यव्हार नहीं करता। यदि कोई ऐसा करता भी है, तो वो अशिष्टता उसी को महँगी पड़ती है। इंसान की इज्ज़त कोई नहीं करता, लोग इज्ज़त करते हैं तो उसकी अच्छाई की और उसके स्वभाव की। इसी प्रकार लोग नफरत करते हैं तो हमारे कार्यों से। 

जीवन इतना मूल्यवान है तो हमारा कर्तव्य एवं दावित्य बन जाता है कि अपने जीवन को सार्थक बनाने का भरपूर प्रयास करें। ऐसा करने के लिए दूसरों का भला करने से अच्छा और कोई मार्ग नहीं है। जैसा करोगे, वैसा भरोगे- यह कुछ ऐसे शब्द हैं जो हम अपने पुरखों से न जाने कितने सालों से सुनते आ रहे है। इन चार शब्दों से हम बहुत समय पहले से वाकिफ़ हैं, परंतु जब तक हम आज़मायेंगे नहीं तब तक यह निश्चित कैसे होगा ! तो उठिये और आज़मा कर देखिए। 

जितना हो सके, जहाँ हो सके भला करो। यदि हम सभी रोज़ किसी एक का ही भला करें और उसके चेहरे पर मुस्कान लाएं तो इस दुनिया से नफ़रत, ईर्ष्या और क्रोध को जड़ से निकल सकते हैं और इंसानियत, प्रेम और सदभाव की एक नई दुनिया बना सकते हैं। आइए एक ऐसे संसार का मिलकर निर्माण करे जहाँ हर कोई दूसरों का हित चाहे बिना यह सोचे की उसे उसके बदले में कुछ मिलेगा या नहीं ,बिना इस बात की परवाह किए की सामने वाले ने धन्यवाद करा कि नहीं। आशा करती हूँ की आप इस पर अवश्य ही विचार करेंगे। 

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