नारी




  

नारी की बदलती भूमिका 

'जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवी देवता निवास करते हैं। जहाँ उसका निरादर होता है, वहाँ परेशानियाँ और दुःख ही रहते है।' अर्थात हमें सर्वदा नारी का सम्मान करना चाहिए। नारी की भूमिका समय-समय पर बदलती रही है। भारत का इतिहास नारियों की उपलब्धियों से सु-वर्ण रचित है। नारी तो योगदान की मूर्ति के समान हैं। उन्होंने कई कठिनाइयों का सामने करते हुए , अपने परिवार, समाज और संपूर्ण राष्ट्र का नाम रोशन किया है। धीरे-धीरे सामजिक बुराइयों और लोगों की रूढ़िवादी-विचारधारा के कारण नारी को समाज में 'बेचारी' और 'लाचार' समझे जाने लगा। उसे पुरुषों से कमज़ोर समझे जाना लगा। उसे इस मतभेद के कारण कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। नारी को समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए और अपने हक़ का सम्मान पाने के लिए, स्वयं ही संघर्ष करना पड़ा। शिक्षा के प्रसार और नारियों के विद्रोह के कारण, समाज में बदलाव आया। अब नारी को सामाज में उचित पद और स्थान दिया जाता है। वे अब पुरुष से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। उनके लिए भी उतनी ही सुविधाएँ और अवसर हैं जितने की पुरुषों के लिए। 

'अपमान मत करना नारियों का, इनके बल पर जग चलता है। 
पुरुष जन्म लेकर, उन्ही की गोद में तो पलता है। '


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